AIMIM मान्यता रद्द केस में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया जिसमें पार्टी की मान्यता खत्म करने की मांग की गई थी।

AIMIM मान्यता रद्द केस: क्या सच में खत्म हो सकती थी पार्टी की पहचान?
AIMIM मान्यता रद्द केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की मान्यता खत्म करने की याचिका को अदालत ने खारिज कर दिया है। इससे पहले हाईकोर्ट भी यह याचिका खारिज कर चुका था।
याचिका में लगाए गए थे गंभीर आरोप
याचिकाकर्ता तिरुपति नरसिम्हा मुरारी का दावा था कि AIMIM धर्म के आधार पर वोट मांगती है, जो संविधान की धर्मनिरपेक्षता की भावना के खिलाफ है। उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी का संविधान मुस्लिम समुदाय के हितों तक सीमित है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों नहीं दी सुनवाई की अनुमति?
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने स्पष्ट किया कि वे दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, जिसने पहले ही याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने मौजूदा याचिका को वापस लेने की अनुमति दी और याचिकाकर्ता को व्यापक मुद्दों के लिए नई याचिका दायर करने की छूट दी।

AIMIM के संविधान को लेकर क्या था तर्क?
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि AIMIM का संविधान सिर्फ एक धर्म विशेष के हितों को आगे बढ़ाता है, जो कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और संविधान के खिलाफ है।
अल्पसंख्यक अधिकारों पर क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि भारत का संविधान स्वयं अल्पसंख्यकों को संरक्षण प्रदान करता है और किसी भी दल का अल्पसंख्यकों के हक में काम करना अपने-आप में असंवैधानिक नहीं हो सकता।
हाईकोर्ट भी कर चुका था याचिका खारिज
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक साल पहले ही कहा था कि AIMIM ने सभी आवश्यक कानूनी शर्तों को पूरा किया है, और उसके संवैधानिक दस्तावेज संविधान के प्रति निष्ठा को दर्शाते हैं। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी।
अब क्या होगा आगे?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि याचिकाकर्ता राजनीतिक दलों की मान्यता प्रणाली में कोई व्यापक सुधार चाहते हैं, तो वे नई रिट याचिका दाखिल कर सकते हैं। लेकिन इस विशेष याचिका पर अब कोई कार्यवाही नहीं होगी।